रही उन की चीन-ए-जबीं देर तक चढ़ाया किए आस्तीं देर तक उड़ाती रही ख़ाकसारों की ख़ाक तुम्हारी गली की ज़मीं देर तक किसी के जो आने की उम्मीद थी रही लब पे जान-ए-हज़ीं देर तक रही देख कर नक़्शा-ए-कू-ए-यार तहय्युर में ख़ुल्द-ए-बरीं देर तक वो नैरंगियाँ मेरे रोने में थीं कि हँसते रहे सब हसीं देर तक