रहना हर दम बुझा बुझा सा कुछ हो गया दिल का मश्ग़ला सा कुछ तेरी ज़ुल्फ़ों का मेरी वहशत का मिलता-जुलता है सिलसिला सा कुछ हम से मिलने को इक ज़माना मिला तेरा मिलना था सानेहा सा कुछ ऐसा उजड़ा सनम-कदा दिल का हो गया ख़ाना-ए-ख़ुदा सा कुछ दिल के सहरा में आ निकलता है अब भी कोई गुरेज़-पा सा कुछ लुत्फ़-ए-दीवानगी नहीं आया बज़्म में लोग थे शनासा कुछ