रहनुमा कहते हैं ठहरो राहज़न बैठे न हों मुद्दआ ये है कि हम पीछे चलें आगे न हों बे-नियाज़ाना गुज़र जाने का शिकवा क्या करूँ बाद मुद्दत के मिले मुमकिन है पहचाने न हों क्या ज़रूरी है कि मीर-ए-कारवाँ आगे रहे कारवाँ को लूटने वाले कहीं पीछे न हों हो चुकी पागल-शुमारी हो चुके जंगल रिज़र्व अक़्ल वालों से कहो अब और दीवाने न हों ये भी पॉलीसी है हक़ वालों का हक़ हरगिज़ न दो साथ ही ये भी हिदायत है कि हंगामे न हों