रहता है अपनी धुन में हवा पर सवार वक़्त करता नहीं किसी का कभी इंतिज़ार वक़्त दरिया है और लौट के आता नहीं कभी सुन कुंज-ए-आफ़ियत में न अपना गुज़ार वक़्त आता नहीं गिरफ़्त में मेरी किसी तरह सीमाब की तरह है बहुत बे-क़रार वक़्त बाक़ी तमाम उम्र कटी है फ़ुज़ूल में गुज़रा जो तेरे साथ है वो यादगार वक़्त गर मिल गया किसी को तो वो ख़ुश-नसीब है मिलता नहीं है सब को यहाँ बार बार वक़्त सब काम ना-तमाम पड़े हैं मिरे अभी थोड़ा सा मुझ को दे मिरे पर्वरदिगार वक़्त रहता है एक हाल में बस इक मिरा ख़ुदा रहता नहीं है एक सा ऐ मेरे यार वक़्त ये वक़्त भी 'हनीफ़' गुज़र जाएगा ज़रूर आएगा एक रोज़ इधर ख़ुश-गवार वक़्त