रहते हैं होश में मगर फिर भी कुछ तो होगा तिरा असर फिर भी मुझ को पागल नहीं किया लेकिन तुम ने छोड़ी है क्या कसर फिर भी यूँ तो अब घाव भर गए बे-शक आते हैं सब निशाँ नज़र फिर भी फेंके पत्थर गुलों को लूटा है कितना ख़ामोश है शजर फिर भी हम को एहसास है सराबों का करते हैं रेत का सफ़र फिर भी घर में हों लोग कब ज़रूरी है लोगों में हो ज़रूर घर फिर भी चाहे हम कोशिशें करें लाखों जाएँगे एक दिन तो मर फिर भी