क़द्र-ए-वफ़ा भी होगी किसी दिन जफ़ा के बा'द लाएगा रंग-ए-ख़ून-ए-शहीदाँ हिना के बा'द होता है इंक़लाब जहाँ हर अदा के बा'द बेबाक भी बनोगे कभी तुम हया के बा'द लाए हैं फूल अहल-ए-मोहब्बत की क़ब्र पर क्या याद आ गया उन्हें तर्क-ए-जफ़ा के बा'द का'बे में मुझ से शान-ए-बुताँ पूछते हो शैख़ तौबा में उन का ज़िक्र करूँगा ख़ुदा के बा'द उन की कमर का कोई पता ही नहीं कहीं ये दूसरा तिलिस्म-ए-नज़र है हुमा के बा'द बैठी है ले के अब मुझे आग़ोश में ज़मीं आराम से हूँ कुंज-ए-लहद में क़ज़ा के बा'द अहल-ए-वफ़ा मिलेगा न मुझ सा जहान में पछताएँगे वो 'औज' ख़ुद आख़िर जफ़ा के बा'द