हर नए साल नया पेड़ लगा देता हूँ और बे-ख़ानुमाँ चिड़ियों को बता देता हूँ रोज़ सुनता हूँ मैं बरगद से पुराने क़िस्से और उसे अपनी कहानी भी सुना देता हूँ रोज़ इक दौर की आवाज़ ठहरती है यहाँ और मैं आवाज़ में आवाज़ मिला देता हूँ माँगने क़र्ज़ निकल जाता हूँ हम-सायों से और बिस्तर पे सवाली को लिटा देता हूँ दिल को पूरी तरह होने नहीं देता बरबाद दुख के फैलाव को मैं ख़ुद ही घटा देता हूँ चाहता हूँ तिरी तस्वीर बनाना लेकिन मैं किसी और की तस्वीर बना देता हूँ जब नज़र आता है अपने सिवा रह-गीर कोई इक दिया और सर-ए-राह जला देता हूँ