राज़-ए-तौहीद तो कसरत में छुपा है ऐ दोस्त सैकड़ों जल्वे हैं इक जल्वा-नुमा है ऐ दोस्त इक ज़माना यहाँ दीवाना बना है ऐ दोस्त तेरे कूचे की हवा होश-रुबा है ऐ दोस्त इशरत-ए-हासिल-ए-इस्याँ में कहाँ वो लज़्ज़त ब-ख़ुदा तर्क-ए-गुनह में जो मज़ा है ऐ दोस्त सुर्मा-ए-तूर हो या ख़ाक-ए-शिफ़ा या इक्सीर सब से बढ़ कर तिरी ख़ाक-ए-कफ़-ए-पा है ऐ दोस्त क्या करें जान न दे दें जो मोहब्बत वाले हर अदा हुस्न की पैग़ाम-ए-क़ज़ा है ऐ दोस्त तू ने किस ऐसी निगाहों से अज़ल में देखा आज तक ख़ौफ़ से दिल काँप रहा है ऐ दोस्त क़ाइल-ए-हश्र-ओ-क़यामत तो सभी हैं लेकिन तेरे वा'दे का यक़ीं किस को हुआ है ऐ दोस्त जानता कौन नहीं अहद-ए-वफ़ा को तेरे वो भी मिनजुमला-ए-अंदाज़-ए-जफ़ा है ऐ दोस्त उस ज़मीं पर किया करते हैं फ़रिश्ते सज्दे तेरे कुश्तों का जहाँ ख़ून बहा है ऐ दोस्त ग़म तिरे जल्वों में हो जाती हैं नज़रें उन की देखने वालों से तेरे ये सुना है ऐ दोस्त ताज-ए-ख़ुसरव से ग़रज़ उस को न तख़्त-ए-जम से 'अफ़्क़र'-ए-ख़ाक-नशीं तेरा गदा है ऐ दोस्त