रक़्स करती है तिरे नूर में ज़ुल्मत मेरी हूँ जुदा तुझ से तो है वहम हक़ीक़त मेरी तेरे अंदाज़ हैं सब साज़-ओ-सदा निकहत-ओ-रंग मेरा एहसास ही गोया है इबादत मेरी मेरे इज़हार को दे लहजा-ए-गुल का ए'जाज़ हर्फ़-ए-लाग़र से न सँभलेगी हिकायत मेरी हुस्न-ए-नादीदा किसी अक्स में ढलता ही नहीं रोज़ लाती है नया आइना हैरत मेरी छाया जाता है ग़ुबार-ए-ग़म-ए-दौराँ दिल पर क्या नहीं अब ग़म-ए-जानाँ को ज़रूरत मेरी दिल है आईना-ए-अजज़ाए-ए-परेशान-ए-वजूद या'नी इक सूरत-ए-इदराक है वहशत मेरी बे-दिली पर तो ये आलम है कि दिल रक़्स में है हो ग़ज़ब रंग पे आए जो तबीअत मेरी