रखना हो तो दिल को निगह-ए-यार में रखना इस जिंस-ए-गिरामी को न बाज़ार में रखना हम अहल-ए-तमन्ना की बस इतनी है करामत इक ख़्वाब सदा दीदा-ए-बेदार में रखना अंजाम-ए-तरब भी तो तअस्सुफ़ है सो इस बार ख़ुशियों को भी तख़्मीना-ए-आज़ार में रखना अब घर जो बनाना कोई ख़्वाबों की ज़मीं पर इमकान-तग़य्युर दर-ओ-दीवार में रखना नाहक़ किसी मज़लूम पर उट्ठे तो लचक जाए ये जौहर-ए-नायाब भी तलवार में रखना ये किया कि हर इक दिल में जगाना तलब-ए-हुस्न और ख़ुद को निहाँ पर्दा-ए-असरार में रखना