रक़्स-ए-आशुफ़्ता-सरी की कोई तदबीर सही लो मिरे पाँव में इक और भी ज़ंजीर सही इम्तिहाँ इस दिल-ए-पुर-शौक़ का करते रहिए और इस जुर्म-ए-वफ़ा पर कोई ताज़ीर सही तान-ओ-दुश्नाम से दीवाने न बाज़ आएँगे कोई इल्ज़ाम सही तोहमत-ए-तक़सीर सही हम तो आवारा-ए-सहरा हैं हमें क्या मतलब उन की महफ़िल में जुनूँ की कोई तौक़ीर सही हर कोई यूसुफ़-ए-कनआँ तो नहीं बन सकता मेरा फ़र्दा ही मिरे ख़्वाब की ताबीर सही क़ाफ़िले कितने ही मंज़िल से भटक जाते हैं हम मुसाफ़िर न सही हम कोई रह-गीर सही नारा-ए-ज़ुल्फ़-ए-सनम शर्त-ए-जुनूँ क्या मअ'नी दर्द रुस्वा ही सही इश्क़ जहाँगीर सही