रखा पा जहाँ में नगारा ज़मीं पर बहुत सर को वाँ हम ने मारा ज़मीं पर जुनूँ जोश मारे है दीवार-ओ-दर से हुआ किस परी का गुज़ारा ज़मीं पर नहीं है ये आह-ए-फ़लक सा कि हम ने अलम शोर-ए-सौदा का गाढ़ा ज़मीं पर क़दम जिस जगह रक्खा उस संग-दिल ने न हो वाँ ब-जुज़ संग-ए-ख़ारा ज़मीं पर नज़र से तिरी जिस ने हम को गिराया फ़लक से उठा कर के मारा ज़मीं पर तू रू-ए-ज़मीं देख ले सैर हो कर न होगा गुज़र फिर दोबारा ज़मीं पर तिरे नक़्श-ए-पा को कहे अपना हम-सर नहीं है ये मुँह तो हमारा ज़मीं पर वो ज़ोहरा-जबीं मेहरबाँ होवे 'हसरत' कहाँ है ये अपना सितारा ज़मीं पर