राह-रस्ते में तू यूँ रहता है आ कर हम से मिल कम गया लेकिन वो यार-ए-ख़ानगी घर हम से मिल दिल तड़पता है पड़ा इस सीना-ए-सद-चाक में खोल कर बंद-ए-क़बा तू ऐ समन-बर हम से मिल बे-नियाज़ उस हुस्न को और नाज़ को बरपा रखे बे-तकल्लुफ़ हो के तू ऐ नाज़-परवर हम से मिल पहुँचना तुम तक मियाँ अपना तो इक अश्काल है होवे ता मिलना तिरा हम को मयस्सर हम से मिल हर मुसीबत भर के मैं पहुँचा हूँ तेरे दर तलक बे-मुरव्वत एक दम आ घर से बाहर हम से मिल अब तो उस बे-दस्त-ओ-पा से हो नहीं सकती तलाश ढूँड ले कर हम को ऐ रिज़्क़-ए-मुक़द्दर हम से मिल इन दिनों रहती है मुझ को बे-क़रारी बेशतर क़स्द कर के तो मुकर्रर और मुक़र्रर हम से मिल सेर रखती हैं मिरी बे-ताबिएँ उस वक़्त ज़ोर हर्फ़ हमारा गर नहीं है तुझ को बावर हम से मिल हो गया तेरी हवा-ख़्वाही में 'हसरत' तू ब-बाद बैठा क्या है ख़ाक में हम को मिला कर हम से मिल