रखते हैं दुश्मनी भी जताते हैं प्यार भी हैं कैसे ग़म-गुसार मिरे ग़म-गुसार भी अफ़्सुर्दगी भी रुख़ पे है उन के निखार भी है आज गुल्सिताँ में ख़िज़ाँ भी बहार भी पीता हूँ मैं शराब-ए-मोहब्बत तो क्या हुआ पीता है ये शराब तो पर्वरदिगार भी मिलने की है ख़ुशी तो बिछड़ने का है मलाल दिल मुतमइन भी आप से है बे-क़रार भी आ कर वो मेरी लाश पे ये कह के रो दिए तुम से हुआ न आज मिरा इंतिज़ार भी ऐ दोस्त ब'अद-ए-मर्ग भी मैं हूँ शिकस्ता-हाल दिल की तरह से टूटा हुआ है मज़ार भी 'पुरनम' ये सब करम है 'क़मर' का जो आज-कल होता है अहल-ए-फ़न में तुम्हारा शुमार भी