रखते हैं रस्म-ओ-राह किसी ख़ुद-निगर से हम लेते हैं काम वुसअ'त-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र से हम ना-आश्ना-ए-मंज़िल-ए-मक़्सूद हैं तो क्या पीछे नहीं रहेंगे किसी हम-सफ़र से हम कुछ आप के ख़याल ने ग़ाफ़िल बना दिया कुछ अपने आप से भी रहे बे-ख़बर से हम क्या ए'तिबार इस ग़म-ए-बे-ए'तिबार का जब मुतमइन नहीं हैं ग़म-ए-मो'तबर से हम वो दौर शायद आ के गुज़र भी गया 'अतीक़' जिस दौर-ए-ख़ुश-गवार के हैं मुंतज़िर से हम