पास-ए-नामूस-ए-मोहब्बत का सवाल आया तो कहीं उन को भी किसी फ़िक्र में डाल आया तो जिन अँधेरों में फ़रोज़ाँ था मिरी फ़िक्र का चाँद उन अँधेरों की सियासत को ज़वाल आया तो कर तो दूँ तेरे जुनूँ-ख़ेज़ लबों की तश्हीर और अगर शीशा-ए-इदराक में बाल आया तो शौक़-ए-मंज़िल तो मिरे काम न आया लेकिन कितनी राहों के ख़म-ओ-पेच निकाल आया तो दिल में वो सोज़-ओ-तब-ओ-ताब कहाँ फिर भी 'अतीक़' ज़िंदगी के कई गोशे को उजाल आया तो