रम्ज़-गर भी गया रम्ज़-दाँ भी गया हुस्न के साथ हुस्न-ए-बयाँ भी गया सर से तारों भरी सर-ज़मीं भी गई पाँव से ख़ाक का आसमाँ भी गया फूल ही फूल थे कुंज-ए-आज़ार में तुम वहाँ भी न थे मैं वहाँ भी गया पहले मिट्टी उड़ी मंज़िलों की तरफ़ फिर उसे ढूँडने कारवाँ भी गया मैं अकेला न था कू-ए-रुसवाई में साथ वीराना-ए-जिस्म-ओ-जाँ भी गया रंग पस्ती के फिर भी न इफ़्शा हुए यूँ तो पाताल तक आसमाँ भी गया इश्क़ में बाम-ओ-दर भी न पीछे रहे साथ अपने मकीं के मकाँ भी गया 'ताबिश' अपने बसेरे की जानिब चलो इस से क्या तुम को सूरज जहाँ भी गया