रंग और रूप के प्रदीप में खोने दे मुझे ख़ुद को चाहत की चढ़ी रौ में डुबोने दे मुझे तू अगर ख़ुश है तो जा क़ाफ़िया-पैमाई कर शेर को रूह की लड़ियों में पिरोने दे मुझे प्रीत का अंत बिछड़ना है मगर और अभी अपनी बाहोँ के कँवल-कुंड में सोने दे मुझे चूम कर इस के मधुर होंटों की रस-वन्त लवें ज़ेहन को नश्शों भरी मय से भिगोने दे मुझे कष्ट वाजिब न सही कलियाँ तो काँटे ही क़ुबूल नई रुत में नए एहसास को बोने दे मुझे तेरा रिश्ता है फ़लक से तो ज़मीं को न उजाड़ नर्म मिट्टी की महक मन में समोने दे मुझे 'हाफ़िज़'-ओ-'मीर' से निस्बत भी बजा लेकिन अब ख़ित्ता-ए-पाक की इस ख़ाक का होने दे मुझे याद आ जाए न जाने उसे बचपन की लगन इसी जंगल में इसी झील पे रोने दे मुझे हुस्न तकरीम सही चाहतीं ताज़ीम सही हाथ अब आप शफ़क़-ताब में धोने दे मुझे