रब्त भी तोड़ा बनी नित की तलब का बेस भी पत्र भी इस ने लिखे भेजे मुझे सन्देस भी चौखटा दिल का यहाँ है हू बहू तुझ सा कोई होंट भी आँखें भी छब ढब भी तुझी सा फ़ेस भी ज़ीस्त के पथ पर नहीं होना था तुझ मुझ में मिलाप हर जनम में प्रीत ने देखे बदल कर भेस भी पूत की साड़ी गुलाबी आफ़्ताबी जिस्म पर लट गुँधी चोटी रिबन शानों पे सँवरे केस भी तुझ से बिछड़े गाँव छोटा शहर में आकर बसे तज दिए सब संगी-साथी त्याग डाला देस भी बस असासा है यही घर का यही घर की मताअ' सोफा इक दो बेड किताबें और इक शो केस भी शाइरी में बाज़ुओं के साथ दिल भी शल हुआ आख़िरश मजबूर हो कर हार दी ये रेस भी नीचे इन झरनों पे वादी में किसे जा कर मिलूँ संग इक सौतन के बेरी पी गए परदेस भी जानता था कौन जीते हैं यही कुछ देखने दिल पे सह लेंगे मोहब्बत में बिरह की ठेस भी