रंग-ए-महफ़िल है कहाँ सुब्ह-ए-बहाराँ की तरह

रंग-ए-महफ़िल है कहाँ सुब्ह-ए-बहाराँ की तरह
बज़्म सजती है मगर हुस्न-ए-गुरेज़ाँ की तरह

याद आती है तिरी मौज-ए-हवा के मानिंद
दिल में चुभती है मगर ख़ार-ए-मुग़ीलाँ की तरह

हुक्म है मर्ग-ए-तबस्सुम का उरूस-ए-गुल को
हाकिम-ए-वक़्त की तक़दीर है यज़्दाँ की तरह

उम्र भर के लिए सरशार जो कर दे ऐसी
मय कहाँ से कोई लाए ग़म-ए-पिन्हाँ की तरह

शहर में भी मिरी वहशत का ठिकाना क्या है
दिल के वीराने तो फैले हैं बयाबाँ की तरह

आ गया पास कोई आलम-ए-तन्हाई में
जी को ठंडक सी मिली दर्द के दरमाँ की तरह

रात तारीक सही रात के सहरा में मगर
कितने महताब उभर आए ग़ज़ालाँ की तरह

ज़ुल्फ़-बर-दोश हँसी लब पे निगाहों में नशा
खिल उठा चेहरा-ए-महबूब गुलिस्ताँ की तरह

जाने किस ख़ाक से उट्ठा था तमन्ना का ख़मीर
आगही लिपटी रही गेसू-ए-जानाँ की तरह

तुझ से जब छुट के हुए पहले-पहल हम तन्हा
रात भर रोते रहे शम-ए-शबिस्ताँ की तरह

इश्क़ के और हैं अंदाज़ बहुत से 'अंजुम'
कोई रुस्वा न हुआ चाक-ए-गरेबाँ की तरह


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