रंग-ए-निगाह मिल गया जल्वा-ए-बे-सिफ़ात में देख रहा हूँ मैं उन्हें बज़्म-ए-तअ'य्युनात में ग़म की हक़ीक़तें समझ ऐश की कैफ़ियात में मौत के ख़द्द-ओ-ख़ाल देख रौशनी-ए-हयात में चाहता हूँ इक इंक़लाब ज़ौक़-ए-जमालियात में बंद-ए-नक़ाब खोल दो बज़्म-ए-तअ'य्युनात में मेरा वजूद ही अजीब चीज़ है काएनात में दूर तजल्लियात से ग़र्क़ तजल्लियात में मुझ को बुला रहे हो क्यों कार-गह-ए-हयात में क्या किसी चीज़ की कमी है अभी काएनात में राज़ ये हल न कर सका कोई भी काएनात में किस की तजल्लियात हैं किस के मुशाहिदात में इस का इलाज क्या कि मैं ख़ुद ही तबाह हो गया तू ने तो कुछ कमी न की कोशिश-ए-इल्तिफ़ात में एक ही थे मगर न थी एक की एक को ख़बर मैं रहा हसरतों में गुम और वो तजल्लियात में पेश-ए-नज़र है बे-हिजाब हुस्न भी राज़-ए-हुस्न भी 'शादाँ' वो रिफ़अतें हैं आज मेरे तख़य्युलात में