या-रब इस इंक़लाब से घबरा रहा हूँ मैं अब दिल रहा न दिल की तमन्ना रहा हूँ मैं ग़म माँगता हूँ और ख़ुशी पा रहा हूँ मैं किस हुस्न से तबाह किया जा रहा हूँ मैं मेरे सिवा सभी जिसे कहते हैं ज़िंदगी तेरे फ़िराक़ में वो सज़ा पा रहा हूँ मैं तारों की तरह रौशन-ओ-महफ़ूज़ हूँ मगर दुनिया को देख देख के थर्रा रहा हूँ मैं आएगा इन लबों पे तबस्सुम न मेरे बाद सारी बहार लूट के ले जा रहा हूँ मैं रुत्बा-शनास-ए-ज़र्रा-ओ-ख़ुर्शीद हूँ मगर हर चीज़ पर निगाह को ठहरा रहा हूँ मैं हिम्मत बंधी रहे तो ग़म-ए-दो-जहान क्या तुम चुप हो बस इसी लिए घबरा रहा हूँ मैं ऐ कोहनगी-ए-नज़्म-ए-शब-ओ-रोज़ होशियार दिल से इक आफ़्ताब को चमका रहा हूँ मैं उस वक़्त इंतिज़ार का आलम न पूछिए जब कोई बार बार कहे आ रहा हूँ मैं करता हूँ दिल में शाम को यूँ सुब्ह का ख़याल जैसे किसी क़ुसूर पे पछता रहा हूँ मैं दैर-ओ-हरम के दाम बिछा कर ज़मीन पर किस किस तरह तलाश किया जा रहा हूँ मैं याद आ न ऐ नसीम-ए-सहर ऐ शगुफ़्तगी अब धूप तेज़ हो गई मुरझा रहा हूँ मैं क़ब्ज़े में दो जहाँ नहीं ऐ दोस्त क्या करूँ सर रख के तेरे पाँव पे पछता रहा हूँ मैं अब ज़ब्त-ए-ग़म की लाज है 'शादाँ' ख़ुदा के हाथ अब तक तो दिल की बात छुपाता रहा हूँ मैं