रंग का फ़र्क़ मिटाया ये शरफ़ मेरा था संग-ए-असवद था मिरा दुर्र-ए-नजफ़ मेरा था सुब्ह-ए-बैअ'त की वो ज़हरीली हवा तेरी थी और जो फूल था शमशीर-ब-कफ़ मेरा था रह के पानी में भी पानी से बहुत दूर रहा था जो दरिया में वफ़ाओं का सदफ़ मेरा था दीन-ओ-दुनिया में रही जंग अंधेरे के सबब सुब्ह के वक़्त मगर मेरी तरफ़ मेरा था उस को करना ही पड़ा सर मिरा ऊँचा 'सौलत' आज नेज़े ने भी समझा जो शरफ़ मेरा था