रंग कहाँ है साया सा है नक़्श कहाँ है धोका सा है सुब्ह की रंगत ज़र्दी-माइल शाम नहीं है धड़का सा है दिल का ख़ून हुआ हो शायद दूर परे जो कोहरा सा है सैल-ए-इश्क़ थमा कब होगा दरिया है और चढ़ता सा है लब उस के जो खुलते देखे एक जहाँ कुछ हँसता सा है अस्ल में नक़्श-ए-कैफ़-ए-हस्ती फ़ानी सा है मिटता सा है हुस्न और इश्क़ हैं दोनों काफ़िर दोनों में इक झगड़ा सा है आओ प्यार से धो लें उस को नक़्श-ए-जहाँ कुछ मैला सा है