शहर शहर ढूँड आए दर-ब-दर पुकार आए सीना-चाक निकले थे और दिल-फ़िगार आए हम कि थे तही-दामन दोस्त और क्या करते ज़िंदगी सी दिलकश शय तेरे ग़म में हार आए तेरे दर से ग़म ले कर जब गुनाहगार उठे मय-कदों का क्या कहना मस्जिदें सँवार आए लग़्ज़िशों से वाबस्ता लग़्ज़िशें क़यामत की रात कुछ अजब धुन में तेरे बादा-ख़्वार आए दोस्तो बस इस लम्हा हम को याद कर लेना जब कभी गुलिस्ताँ में मौसम-ए-बहार आए