रंग से पैरहन-ए-सादा हिनाई हो जाए पहने ज़ंजीर जो चाँदी की तलाई हो जाए ख़ुद-फ़रोशी को जो तू निकले ब-शक्ल-ए-यूसुफ़ ऐ सनम तेरी ख़रीदार ख़ुदाई हो जाए ख़त-ए-तोअम की तरह आशिक़ ओ माशूक़ हैं एक दोनों बेकार हैं जिस वक़्त जुदाई हो जाए तंगी-ए-गोशा-ए-उज़लत है बयाँ से बाहर नहीं इम्कान कि च्यूँटी की समाई हो जाए यही हर उज़्व से आती है सदा फ़ुर्क़त में वक़्त ये वो है जुदा भाई से भाई हो जाए अपनी ही आग में ऐ 'बर्क़' जला जाता हूँ उंसुर-ए-ख़ाक हो तुर्बत जो लड़ाई हो जाए