मुज़्दा ये सबा उस बुत-ए-बे-बाक को पहुँचा ये दूद-ए-दिल-ए-सोख़्ता अफ़्लाक को पहुँचा पैग़ाम ज़बानी तो नसीबों में कहाँ था नामा भी न तेरा तिरे ग़मनाक को पहुँचा सद-चाक किया पैरहन-ए-गुल को सबा ने जब वो न तिरी ख़ूबी-ए-पोशाक को पहुँचा सहरा में 'हवस' ख़ार-ए-मुग़ीलाँ की मदद से बारे मिरा ख़ूँ हर ख़स-ओ-ख़ाशाक को पहुँचा