रंगत तिरे बदन की गुलाबों में अब नहीं नग़्मे का दर्द भी तो रबाबों में अब नहीं हम ही तो एक ख़ाना-ख़राबों में अब नहीं वो कौन शख़्स है जो अज़ाबों में अब नहीं तेरा विसाल तेरी तमन्ना तो दूर है तेरा ख़याल भी मिरे ख़्वाबों में अब नहीं हैरानियों में उलझे हुए हैं दिल-ओ-दिमाग़ वो दिल-फ़रेबियाँ भी सराबों में अब नहीं चेहरों से जिस क़दर है 'जहाँगीर' ग़म अयाँ तहरीर इस तरह से किताबों में अब नहीं