रंग-ए-वहशत कम नहीं ज़ख़्म-ए-तमाशा कम नहीं ज़िंदा रहने के लिए आशोब-ए-दुनिया कम नहीं देखना चाहें तो साहिल पर लिए मंज़र बहुत डूबना चाहें तो कोई मौज-ए-दरिया कम नहीं लौट कर वापस नहीं आए परिंदे आज भी हिर्स के सैद-ए-ज़बूँ को बाल-ए-अन्क़ा कम नहीं वक़्त की रफ़्तार को नापे है अक़्ल-ए-ना-रसा ज़र्रा-ए-ना-चीज़ भी हंगामा-आरा कम नहीं बाल-ओ-पर के आज़माने को फ़ज़ाएँ हैं बहुत आसमाँ का दश्त-ए-ला-महदूद ऐसा कम नहीं ज़ेर-ए-पा मुझ को कई टूटे हुए ख़ंजर मिले शहर-ए-ना-पुरसाँ में भी मेरे शनासा कम नहीं इस जहान ख़ैर-ओ-शर से बद-गुमाँ क्यूँ हो कोई बाज़ू-ए-क़ातिल से 'नामी' दस्त-ए-ईसा कम नहीं