रंगीँ-नज़राँ लाला-रुख़ाँ यूँ तो बहुत हैं मसहूर निगाह-ओ-दिल-ओ-जाँ यूँ तो बहुत हैं हम ही हैं कि जिन के लिए ख़ुद चल पड़ी मंज़िल वर्ना सू-ए-मंज़िल निगराँ यूँ तो बहुत हैं है कौन गुज़र जाए जो इस मौज-ए-बला से आशुफ़्ता-ए-गेसू-ए-बुताँ यूँ तो बहुत हैं अब देखिए ये बार-ए-करम उठता है कैसे हम ख़ूगर-ए-बेदाद-ए-बुताँ यूँ तो बहुत हैं दिल काविश-ए-दौराँ से परेशान है वर्ना नज़्ज़ारे निगाहों में जवाँ यूँ तो बहुत हैं है तेरे ही ग़म से ग़म-ए-कौनैन इबारत कहने को ग़म-ए-कौन-ओ-मकाँ यूँ बहुत हैं मेयार है बस तू ही मिरे हुस्न-ए-नज़र का फ़िरदौस-ए-नज़र ख़ुश-नज़राँ यूँ तो बहुत हैं हम हैं वो जिन्हें ग़म ने तिरे प्यार किया है आशुफ़्ता-दिल-ओ-शो'ला-ब-जाँ यूँ तो बहुत हैं हमराह अगर तुम हो तो क्या फ़िक्र 'ग़नी' को हाँ इश्क़ में रंज और ज़ियाँ यूँ तो बहुत हैं