रंग-ओ-बू फूल में कली में नहीं हुस्न भी अब वो चाँदनी में नहीं आदमिय्यत जो आदमी में नहीं ग़म का एहसास अब किसी में नहीं ज़हर-बर-लब हर एक गुल है आज ज़िंदगी फूल की हँसी में नहीं बादा-ए-इंतिक़ाम पी पी कर आदमी जैसे आप ही में नहीं दुश्मनी का भी पस्त है मेआ'र अब बुलंदी भी दोस्ती में नहीं मय-कदों में है ज़िक्र-ए-दैर-ओ-हरम कैफ़-ओ-मस्ती जो मय-कशी में नहीं अब पयाम-ए-सुकून ओ राहत-ए-दिल लाला-ओ-गुल की ताज़गी में नहीं ज़ीस्त उस की है एक मर्ग-ए-दवाम ज़िंदगी जिस की ज़िंदगी में नहीं कौन किस का गिला करे 'अमजद' नूर-ए-इंसानियत किसी में नहीं