रंगों की बरसात थी कैसी फागन में फूल खिले थे कली कली घर आँगन में अब तक उस की याद में तन-मन जलता है धोका मुझ को जिस ने दिया था सावन में जनम मरन का चक्कर कब पूरा होगा सदियाँ बीत गई हैं आवन जावन में आँखें निस-दिन नीर बहाती रहती हैं आग लगी है कैसी मेरे तन-मन में उस का बदन तो आईनों को शरमाए क्यों वो मुखड़ा देख रही थी दर्पन में जल-थल जल-थल उमड़ घुमड़ बरसे बादल प्यास मिटी नहीं फिर भी मेरी सावन में कौन उजाले ले कर मेरे घर आया धूप उतर आई है मेरे आँगन में जब चाहेगी फन को उठा कर डस लेगी अमृत पाए कैसे कोई नागन में बदल गए आसेबों में वो चेहरे क्यों देखे जिन के ख़्वाब सुहाने बचपन में डर और ज़ुल्म का यारो कोई अंत नहीं ख़ुद को ढूँड रहे हैं लोग अब रावन में 'राज' बहुत मुश्किल है लेना सुख का साँस दुख ने ऐसा जकड़ लिया है बंधन में