रंगों से ठंडे पानी के चश्मे बना दिए काग़ज़ पे साया-दार शजर भी लगा दिए लाऊँगा अब कहाँ से नज़ारे की ताब मैं उस ने तो मेरी आँख से पर्दे हटा दिए बाग़-ए-हुरूफ़-ओ-गुलशन-ए-मा'नी में देखना किस ने ये ख़ामुशी के नए गुल खिला दिए छोटे से अब्र पारे ने आ के सर-ए-फ़लक अहल-ए-नज़र को दिन ढले पैग़ाम क्या दिए बस हम तो एक छोटी सी ज़िद पे अड़े रहे दस्तार को बचाने में सर ही कटा दिए आँखों में रह गए हैं फ़क़त आस के सराब दरिया वो यास के थे जो उन में बहा दिए दिन को सफ़र कुछ और भी आसान हो गया रातों को सब्ज़ ख़्वाब ये किस ने दिखा दिए तरतीब से लिए हैं तुम्हारे तमाम नाम इक और ही फ़लक पे सितारे सजा दिए तूफ़ाँ का रूप धार लिया तेज़ साँस ने इतना कि ख़्वाब-गाह के पर्दे हिला दिए