ये हम से पूछते हो रंज-ए-इम्तिहाँ क्या है तुम्हीं कहो सिला-ए-ख़ून-ए-कुश्तगाँ क्या है असीर-ए-बंद-ए-ख़िज़ाँ हूँ न पूछ ऐ सय्याद ख़िराम क्या है सबा क्या है गुलसिताँ क्या है हुई है उम्र कि दिल को नज़र से रब्त नहीं मगर ये सिलसिला-ए-चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ क्या है नज़र उठे तो न समझूँ झुके तो क्या समझूँ सुकूत-ए-नाज़ ये पैरा-ए-बयाँ क्या है बहें न आँख से आँसू तो नग़्मगी बे-सूद खिलें न फूल तो रंगीनी-ए-फ़ुग़ाँ क्या है निगाह-ए-यास तिरे हाथ है भरम दिल का कहीं वो जान न लें इश्क़ की ज़बाँ क्या है ये और बात कि हम तुम को बेवफ़ा न कहें मगर ये जानते हैं जौर-ए-आसमाँ क्या है मैं शिकवा-संज नहीं अपनी तीरा-बख़्ती का मगर बताओ तो ये सुब्ह-ए-ज़र-फ़िशाँ क्या है