रंग-ओ-रामिश ज़मज़मे गुल-हा-ए-तर होते हुए दिल अकेला और इतने हम-सफ़र होते हुए आँसुओं से सर्द हो जाती है हर सीने की आग मेरा दिल आतिश-कदा है चश्म-तर होते हुए दिल की दुनिया में अंधेरा हो तो कुछ रौशन नहीं आँख चशम-ए-संग है शम्स ओ क़मर होते हुए चश्म आगे एक चेहरा पाँव गो चक्कर में हैं दर-ब-दर होता नहीं दिल दर-ब-दर होते हुए हौसला टूटा तो वो इबरत का मंज़र आ गया उड़ नहीं पाया परिंदा बाल-ओ-पर होते हुए निस्फ़ दुनिया भूक से और प्यास से मग़्लूब है दस्त ओ बाज़ू ज़ेहन ओ दिल लाल-ओ-गुहर होते हुए हर कस-ओ-ना-कस पे कर लेता है फ़ौरन ए'तिबार बे-ख़बर कितना है 'ख़ालिद' बा-ख़बर होते हुए