रंज क्यूँ ऐ माह-ए-कनआँ कीजिए चलिए शुक्र-ए-चाक-दामाँ कीजिए उज़्र-ए-बेताबी का सामाँ कीजिए होश बे-होशी पे क़ुर्बां कीजिए आज फिर रख कर बिना-ए-आशियाँ जी में है बिजली को मेहमाँ कीजिए बे-नियाज़-ए-हिस है मेरी बे-ख़ुदी दर्द ही कब है कि दरमाँ कीजिए क़िस्सा-ए-दिल लिख चुके 'मानी' बस अब ख़ूँ के आँसू ज़ेब-ए-उनवाँ कीजिए