रंज-ओ-ग़म दर्द-ओ-अलम आह-ओ-फ़ुग़ाँ है ज़िंदगी सैकड़ों उन्वान की इक दास्ताँ है ज़िंदगी जल रहे हैं ख़ार-ओ-ख़स उन का धुआँ है ज़िंदगी शाख़-ए-गुल पर इक सुलगता आशियाँ है ज़िंदगी देखिए तो इक हबाब-ए-मौज-ए-दरिया भी नहीं सोचिए तो एक बहर-ए-बेकराँ है ज़िंदगी फ़र्श-ए-गेती पर फ़रिश्तों ने भी हिम्मत हार दी वो ग़म-ए-दिल-दोज़ वो बार-ए-गराँ है ज़िंदगी दर्द-ओ-कुल्फ़त से न घबरा ऐ 'मयंक' इस दौर में सब्र-ओ-इस्तिक़्लाल का इक इम्तिहाँ है ज़िंदगी