रंज-ओ-ग़म का मलाल क्या करते उस से हम अर्ज़-ए-हाल क्या करते जो हमारा कभी हुआ ही नहीं उस से दिल का सवाल क्या करते क़ुफ़्ल-ए-ग़ैरत पड़ा था होंटों पर हम किसी से सवाल क्या करते सामने थी उदास तन्हाई कोई रंगीं ख़याल क्या करते सौंप कर मुतमइन थे हम उन को दिल की फिर देख-भाल क्या करते जिन को हम ने सँभाल रक्खा था वो हमारा ख़याल क्या करते वक़्त ने तोड़ दी अना 'शाकिर' वर्ना वो पाएमाल क्या करते