मिरे जुनूँ के फ़साने बदलते रहते हैं कि ख़्वाब लम्हे सुहाने बदलते रहते हैं न बदला आज भी मफ़्हूम हक़्क़-ओ-बातिल का ये और बात ज़माने बदलते रहते हैं मैं उन के तीर का हँस कर जवाब देता हूँ मिरे अज़ीज़ निशाने बदलते रहते हैं फ़क़ीर कच्चे मकानों में मस्त हैं लेकिन अमीर लोग ठिकाने बदलते रहते हैं पता मैं कैसे रखूँ याद उन का ऐ 'शाकिर' जो रोज़ रोज़ ठिकाने बदलते रहते हैं