रंज-ओ-ग़म लाख हों मुस्कुराते रहो दोस्त दुश्मन से मिलते मिलाते रहो ये अँधेरे हैं मेहमान इक रात के तुम मगर सुब्ह तक जगमगाते रहो मैं भुलाने की कोशिश करूँगा तुम्हें तुम मुझे रोज़-ओ-शब याद आते रहो राह के पेच-ओ-ख़म ख़ुद सुलझ जाएँगे सू-ए-मंज़िल क़दम को बढ़ाते रहो अब्र बन कर बरसते रहो हर तरफ़ उम्र शादाबियों की बढ़ाते रहो मौत आए तो ख़ामोश कर जाएगी ज़िंदगी गीत है इस को गाते रहो ताज़ा दम मुझ को रखना है 'हाफ़िज़' तो फिर हर क़दम पर मुझे आज़माते रहो