रक़्स में आज चारपाई है खटमलों की बरात आई है आज बिस्तर ज़मीन पर कर लें ये चुग़ुल-ख़ोर चारपाई है आएँ 'ग़ालिब' भी तो कहाँ बैठे टाट है घर में न चटाई है उस ने चप्पल भी चूम कर मारी ये भी अंदाज़-ए-दिल-रुबाई है देख कर मुझ को हँस पड़े हैं वो किस क़दर दर्द-आश्नाई है मुस्कुराते हैं गालियाँ सुन कर ये सियासत की बे-हयाई है बासी रोटी ही वक़्त पर दे दो ये बफ़ाती भी घर जमाई है 'बे-तकल्लुफ़' रखेंगे याद सभी जो हज़ल आप ने सुनाई है