रास आई भी तो आई शान-ए-मस्ताना मुझे सारी दुनिया कह रही है उन का दीवाना मुझे दिल भी काशाना है तेरा उस की दीवानी न देख फिर जलाना है चराग़-ए-मेहमाँ-ख़ाना मुझे ग़ुंचा-ए-नौरस से ढलने को है तहरीक-ए-हयात गुदगुदाती है शमीम-ए-सुब्ह-ए-मय-ख़ाना मुझे इश्क़ की वारफ़्तगी भी इक तिलिस्म-ए-राज़ है ख़ुद हरम ने बख़्श दी जागीर-ए-बुत-ख़ाना मुझे अल-मदद ऐ ताबनाकी-ए-जमाल-ए-रू-ए-दोस्त नागवार-ए-दीद हैं वो बे-हिजाबाना मुझे दूर से नज़रें बचा कर'' जब गुज़रती है बहार गुल्सिताँ मालूम होता है अज़ा-ख़ाना मुझे ख़ुद मिरी हस्ती है 'माहिर' आलम-ए-अनवार-ए-हुस्न जल्वा-गाह-ए-दोस्त हूँ समझो ख़ुदा-ख़ाना मुझे