रंग-ए-ख़िज़ाँ चमन की शगुफ़्ता नज़र में देख ख़्वाबीदा ज़ुल्मतें हैं ज़िया-ए-सहर में देख कैफ़िय्यत-ए-जमाल दिल-ए-यास असर में रख जन्नत सिमट के आ गई मेरी नज़र में देख महसूस हो रही हैं शुआएँ सी नूर की मैं जज़्ब हो गया हूँ तिरे संग-ए-दर में देख ऐ हम-नफ़स हक़ीक़त-ए-तूल-ए-शब-ए-फ़िराक़ मुझ से न पूछ ज़िंदगी-ए-मुख़्तसर में देख फ़िरदौस-ए-मै-कदा है हर इक मंज़र-ए-ख़याल ढलती हुई शराब का आलम नज़र में देख महसूस कर रहा हूँ फ़रेब-ए-निगाह को रक़्साँ तजल्लियाँ हैं मिरी चश्म-ए-तर में देख हर इम्तिहान-ए-राह-ए-वफ़ा से गुज़र चुका 'माहिर' का अब वक़ार जहाँ की नज़र में देख