लफ़्ज़ हो पाई नहीं फिर भी मआ'नी में हूँ मैं या'नी किरदार नहीं और कहानी में हूँ मैं मेरी पहचान हवालों ही से दी जाती है सीधा इक नाम नहीं होता है या'नी में हूँ मैं मौज दरिया की तुम्हें साथ लिए चलती है और उधर झील के ठहरे हुए पानी में हूँ मैं मंज़िलें गुम हैं क़दम ठहरे हुए हैं फिर भी ज़िंदगी को ये गुमाँ है की रवानी में हूँ मैं वो है जंगल तो मुझे ढूँढो परिंदों में 'सबा' वो है दरिया तो समझ जाओ कि पानी में हूँ मैं