ज़ोम का ही तो आरिज़ा है मुझे मेरा मैं ही तो खा गया है मुझे आतिश ज़ेर-ए-पा ठहरने न दे अब तो मंज़िल भी रास्ता है मुझे दर्द तो कम नहीं मगर उस ने ख़ूगर-ए-ज़ब्त कर दिया है मुझे ख़ुद-ग़रज़ बेवफ़ा हक़ीर-ओ-फ़क़ीर उस ने क्या क्या नहीं कहा है मुझे मैं तलबगार था मसर्रत का दफ़्तर-ए-रंज-ओ-ग़म मिला है मुझे मैं ने अशआर कब लिखे 'आज़म' मेरे अशआर ने लिखा है मुझे