रस्म-ए-मेहर-ओ-वफ़ा की बात करें फिर किसी दिलरुबा की बात करें सख़्त बेगाना-ए-हयात है दिल आओ उस आश्ना की बात करें ज़ुल्फ़ ओ रुख़्सार के तसव्वुर में हुस्न ओ नाज़-ओ-अदा की बात करें गेसुओं के फ़साने दोहराएँ अपने बख़्त-ए-रसा की बात करें मुद्दआ-ए-वफ़ा किसे मालूम दिल-ए-बे-मुद्दआ की बात करें कश्ती-ए-दिल का नाख़ुदा दिल है क्यूँ किसी नाख़ुदा की बात करें भूल जाएँ जहाँ के जौर-ओ-सितम अपनी मेहर-ओ-वफ़ा की बात करें हम से आज़ुर्दा है तबस्सुम-ए-दोस्त इसी हुस्न-ए-अदा की बात करें