सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई दुनिया की वही रौनक़ दिल की वही तन्हाई इक लहज़ा बहे आँसू इक लहज़ा हँसी आई सीखे हैं नए दिल ने अंदाज़-ए-शकेबाई इस मौसम-ए-गुल ही से बहके नहीं दीवाने साथ अब्र-ए-बहाराँ के वो ज़ुल्फ़ भी लहराई हर दर्द-ए-मोहब्बत से उलझा है ग़म-ए-हस्ती क्या क्या हमें याद आया जब याद तिरी आई चरके वो दिए दिल को महरूमी-ए-क़िस्मत ने अब हिज्र भी तन्हाई और वस्ल भी तन्हाई देखे हैं बहुत हम ने हंगामे मोहब्बत के आग़ाज़ भी रुस्वाई अंजाम भी रुस्वाई ये बज़्म-ए-मोहब्बत है इस बज़्म-ए-मोहब्बत में दीवाने भी शैदाई फ़रज़ाने भी शैदाई