रास्ता चाहिए दरिया की फ़रावानी को है अगर ज़ो'म तो ले रोक ले तुग़्यानी को आइना टूट गया शक्ल के ज़र्रे बिखरे क्या छुपाता है अब इस दश्त की वीरानी को आब-यारी जो हुई है तो शजर भी होंगे तू ने समझा था ग़लत ख़ून की अर्ज़ानी को ले ये तूफ़ाँ तिरी दहलीज़ तक आ पहुँचा है बर्फ़ समझा था उसी ठहरे हुए पानी को सुरख़-रू हूँ कि मैं इस आग से कुंदन निकला शोला-ए-ख़ूँ ने उजाला मिरी पेशानी को मैं उतर आया हूँ उस पार जहाँ मौत नहीं मिल गया जिस्म-नुमा रूह की उर्यानी को वाक़िआ' आम हुआ धूप की किरनों की तरह देख ले हाथ लगा कर मिरी ताबानी को फिर नई फ़स्ल का मौसम है दुआ कर 'शाहिद' अब्र सैराब करे ख़ित्ता-ए-बारानी को