रास्ता होगा जब तक न हमवार सा हर सफ़र होगा फिर उस पे दुश्वार सा ये ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत की ज़ंजीर थी जिस ने कर डाला उस को गिरफ़्तार सा उस का चेहरा लकीरों में बट सा गया अपनी ख़ातिर बना है वो आज़ार सा इस ज़बाँ से उसे कुछ न कहना मगर लफ़्ज़ तहरीर में रखना तलवार सा क्या 'रोबीना' तिरे हाथ थकते नहीं लिखते लिखते कहानी का किरदार सा