रस्ता किसी वहशी का अभी देख रहा है ये पेड़ जो इस राह में सदियों से खड़ा है ग़ुर्बत के अँधेरे में तिरी याद के जुगनू चमके हैं तो राहों का सफ़र और बढ़ा है दुनिया से अलग हो के गुज़रती है जवानी हालाँ कि ये मुमकिन नहीं पुरखों से सुना है चाहत जो जुनूँ के लिए ज़ंजीर बनी थी आज उस को भी वहशत ने मिरी तोड़ दिया है यारो न अभी अपने ठिकानों को सिधारो कुछ बात करो रात कटे सर्द हवा है इक ग़म का अलाव है जिसे घेर के सब लोग बैठे हैं कि 'राही' ने नया गीत लिखा है